रांची। दुर्गा पूजा और विजयादशमी पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती हैं, लेकिन झारखंड की असुर जनजाति के लिए यह शोक का समय है। इस समाज में मान्यता है कि महिषासुर ही धरती के राजा थे, जिनका संहार छलपूर्वक कर दिया गया। यह जनजाति महिषासुर को ‘हुड़ुर दुर्गा’ के रूप में पूजती है। यह समुदाय अपने आराध्य महिषासुर की स्मृति में नवरात्र से दशहरा तक किसी भी शुभ कार्य से परहेज करता है।
असुर जनजाति और महिषासुर पूजा
- महिषासुर इस जनजाति के आराध्य पितृपुरुष माने जाते हैं।
- इस समाज में मान्यता है कि महिषासुर धरती के राजा थे, जिन्हें छलपूर्वक मारा गया।
- महिषासुर को असुर जनजाति ‘हुड़ुर दुर्गा’ के रूप में पूजती है।
- नवरात्र से दशहरा तक शोक और उपवास का समय माना जाता है।
- इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता, और लोग बाहर निकलने से परहेज करते हैं।
भौगोलिक विस्तार
- झारखंड के गुमला, लोहरदगा, पलामू, लातेहार जिलों में असुर जनजाति रहती है।
- पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर और आसपास के क्षेत्रों में भी असुरों की आबादी है।
- मिदनापुर जिले के केंदाशोल और आसपास के गांवों में सप्तमी से दशमी तक महिषासुर की मूर्ति ‘हुड़ुर दुर्गा’ की प्रतिष्ठा होती है।
परंपरागत पूजा
- झारखंड के असुर लोग महिषासुर की मूर्ति नहीं बनाते, लेकिन दीपावली की रात मिट्टी का छोटा पिंड बनाकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
- प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार महिषासुर की सवारी भैंसा (काड़ा) की पूजा की जाती है।
- गुमला जिले के बिशुनपुर, डुमरी, घाघरा, चैनपुर और लातेहार के महुआडाड़ में यह परंपरा आज भी जीवित है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
- असुर जनजाति को मानव विज्ञानियों ने प्रोटो-आस्ट्रेलाइड समूह में रखा है।
- ऋग्वेद, ब्राह्मण, उपनिषद और महाभारत में असुरों का उल्लेख मिलता है।
- झारखंड में असुरों के किले और कब्रें लगभग सौ स्थानों पर खोजी गई हैं।
- असुर समुदाय ने ताम्र, कांस्य और लौह युग में लोहे के औजार और सामग्री बनाई।
- झारखंड में रहनेवाली असुर जनजाति आज भी मिट्टी से परंपरागत तरीके से लौहकणों को निकालकर लोहे के सामान बनाती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता
- असुरों की पूजा महिषासुर को समर्पित, जबकि संताल परगना के अन्य जनजातियों में रावण को पूर्वज माना जाता है।
- इन क्षेत्रों में रावण वध की परंपरा और नवरात्र में दुर्गा पूजा नहीं होती।
- वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रावण दहन में भाग लेने से मना किया, यह कहते हुए कि रावण उनके कुलगुरु हैं।